अजीब सी दशा है दिल की,
बिना पिंजरे का कैदी हो गया है...
उड़ने की ख्वाइस थी हमेशा
अब जब मिला है आसमां खुला ...
सहि -गलत कि बेड़ियों से बंधा है ।
पी.एस : आज मन हुआ हिन्दी में लिखूँ :)
पी.एस : लिखने कुछ और बैठी थी, लिखा कुछ और :D
पी.एस : घर कि बहुत याद आती है आजकल :(
पी.एस : वो छोड़ो ये सुनो पश्मीना धागो के संग कोई आज बुने ख्वाब :)
Nice! I was immediately reminded of the original poetry that was woven in pashmina, Raat Pashmine Ki by Gulzar.
ReplyDeletehttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4_%E0%A4%AA%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%87_%E0%A4%95%E0%A5%80_/_%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%B0
PS- Now i know what my agenda for the day is gonna be. Thanks for that :D
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ReplyDeletehey Yash, opened this blog space after a long time.
ReplyDeleteWould like to know what was your agenda that day and what did you accomplish :)
Hi! :)
DeleteI don't really remember...but from my comment it seems i must spent the day reading Gulzar..must have been a good day :D
sample this:
ReplyDeleteमेरी दहलीज़ पर बैठी हुयी जानो पे सर रखे
ये शब अफ़सोस करने आई है कि मेरे घर पे
आज ही जो मर गया है दिन
वह दिन हमजाद था उसका!
वह आई है कि मेरे घर में उसको दफ्न कर के,
इक दीया दहलीज़ पे रख कर,
निशानी छोड़ दे कि मह्व है ये कब्र,
इसमें दूसरा आकर नहीं लेटे!
मैं शब को कैसे बतलाऊँ,
बहुत से दिन मेरे आँगन में यूँ आधे अधूरे से
कफ़न ओढ़े पड़े हैं कितने सालों से,
जिन्हें मैं आज तक दफना नही पाया!!